एक का पदमगुणा-जीवन अनुभव

 ये तब की बात है जब मैं पानीपत के ‘ज्ञान मानसरोवर’ में अपनी सेवाएं देता था। दोपहर के 12 बज गए थे तभी मुझे क्लास कराने वहां से करीब 10 किलोमीटर दूर एक गांव में जाना था। क्लास का समय भी 12 बजे से ही था और 12 बज चुके थे। मैंने गाड़ी निकाली और चल पड़ा, जल्दबाजी में मैं मुख्य दरवाजा पार करने वाला था तभी मुझे याद आया कि बाबा से छुट्टी नहीं ली। फिर मैं वहां से लौटा और बाबा के कमरे में जाकर बाबा से छुट्टी ली। और जल्दबाजी दिखाते हुए निकल पड़ा। जहां क्लास कराना था वहां से करीब एक किलोमीटर दूर था मैं। तभी मेरे सामने से आते हुए दो लोग नज़र आए जो अपने दुपहिया वाहन पर सवार, बातों में मसगुल, नज़र कहीं और किए हुए तेजी से मेरे तरफ बढ़े आ रहे थे। उस समय मैं भी तेजी में ही था। फिर मैंने देखा कि वो मुझे देख ही नहीं रहे मैंने हॉर्न भी दिया, और गाड़ी फुटपाथ पे ले ली। तब तक वो दोनों महाशयों ने जोरदार टक्कर मारा मुझे। गाड़ी लिए मैं सीधा सड़क के नीचे गिरा। उन दोनों को भी हल्की चोट आई, पर मेरा सारा सफेद कपड़ा लाल हो गया। मुश्किल से उठा, गाड़ी उठाई और सड़क पे आ गया। तनिक भी अहसास नहीं कि मुझे चोट लगी है। काफ़ी लोग इकट्ठे हो गए, हॉस्पिटल ले चलो इसको- ऐसे बोलते हुए। मैंने बोला नहीं मुझे इतनी चोट नहीं है। एक सज्जन ने दया दिखाते हुए बोला- भाई, तेरा कपड़ा तो रंग गया है और कह रहा है चोट नहीं आई। लेकिन उस वक्त तनिक भी चोट महसूस नहीं हो रहा था। मैंने सेंटर की दीदी को फ़ोन किया कि मैं क्लास नहीं जा सकता और गाड़ी उठाकर फिर लौट गया। गाड़ी के आगे का टायर ऊपर के मोटरगार्ड में बार-बार टक्कर खा रहा था, मैंने उसपर ध्यान दिए बिना ही आगे बढ़ता गया। हाइवे पर पहुंच कर मैं एक ऑटो वाले से आगे निकलने की कोशिश कर रहा था तभी जबरदस्त धमाका करते हुए मेरे गाड़ी के आगे का टायर फट गया और मैं फिर गिरा, ऑटो के ठीक 2 मीटर आगे। ऑटो वाले ने तो मेरे ऊपर गाड़ी चढ़ाने से बचा लिया पर अबकी बार चोट बहुत आई। पैर में भी मोच आ गयी, हथेली पर से चमड़ी बाहर आ गई; रगड़ खाकर। अब चलने जैसी हिम्मत न थी। सेंटर की बहन को फ़ोन किया। गाड़ी आई और ले गई। मैं पूरे रास्ते सोंचता रहा कि मेरे साथ ऐसा क्यों ! जबकि मैं सेवा करने जा रहा था, बाबा से छुट्टी लेने लौटकर गया था। शाम को योग में भी एक सवाल मेरे मन में बार-बार घूम रहा था- मेरे साथ ऐसा क्यों?


उसदिन योग में बाबा ने बहुत बहुत प्यार दिया और जवाब भी बड़े शानदार दिया। बाबा का जवाब एक ही वाक्य में था- बच्चे दो बड़े दुर्घटनाओं के बाद, जीवन दान। ये केवल इसलिए सम्भव हो सका, क्योंकि मैं आगे जाकर फिर घूमकर आया था छुट्टी लेने हेतू। इसके बदले मिला क्या- जीवनदान। बाबा ऐसे ही नहीं कहता मैं एक का पदमगुणा देता हूँ।

शायद कोई और होता तो अनेको नकारात्मक विचारों से ग्रसित होकर बाबा को छोड़ जाता। पर बाबा हमेशा कहते हैं, ‘बच्चे संगमयुग है ही कल्याणकारी युग। और दूसरे दिन नया जीवनदान मिलने की खुशी में मैंने अमृतवेले से ही अपनी सेवा संभाल ली। हाथ और पैर में पट्टियां बंधी थी, तब भी एक नहीं चार क्लास करा के आया और गाड़ी चलाकर गया।




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